Bankelal aur tlismdev
देवपुत्र करण और राक्षस केकड़ा के युद्ध के बीच में टांग अड़ाने के कारण बांकेलाल को मिल गया देवपुत्र का वरदान वहीँ राक्षस केकड़ा ने खायी कसम बांकेलाल से बदला लेने की। इधर खुराफाती बांकेलाल को सूझ गयी एक और योजना राजा विक्रमसिंह को मारकर चक्रवती सम्राट बनने की और उसने विक्रमसिंह को उकसाया अश्वमेघ यज्ञ करने के लिए और उसने जानबूझकर यज्ञ के घोड़े को भेज दिया उस रास्ते जहाँ था विशालगढ़ से ज्यादा शक्तिशाली राज्य चोखट नगरी। परन्तु चोखट नगरी पर मंडरा रहा था जादूगर ज़िमजमाजम और राक्षस केकड़े का आतंक और उनसे निबटने की ज़िम्मेदारी आई बेचारे बांकेलाल के ऊपर। बांकेलाल ने उनसे निबटने के लिए तिलिस्मदेव का आह्वाहन और जब बांकेलाल को पता चला तिलिस्मदेव की अपार शक्ति का तो देवपुत्र के वरदान की मदद से तिलिस्मदेव की ही सारी शक्ति छीनने की योजना बना ली बांकेलाल ने।
English Translate:- In the battle between Devaputra Karan and the demon crab, Bankelal got the leg of Devaputra, while the demon crab swore to take revenge on Bankelal. Here Khurafati Banke Lal got another idea to become Chakravati Emperor by killing King Vikram Singh and he instigated Vikram Singh to perform the Ashwamedha Yagna and he deliberately sent the horse of Yajna on the way where there was a more powerful kingdom than Vishalgarh. But the city of Chokhat was hovering over the terror of the magician Zimjamajam and the demon crab and the responsibility to deal with them came upon poor Banke Lal. Bankelal called upon Tilismadeva to deal with them, and when Bankelal came to know about the immense power of Tilismadeva, with the help of Devaputra's boon, Bankelal planned to take away all the power of Tilismadeva.
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